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अगस्त में विनिर्माण गतिविधि 57.5 तक धीमी, लागत में गिरावट से उत्पादकों को राहत

अगस्त में भारतीय विनिर्माण गतिविधि तीन महीने के निचले स्तर 57.9 पर पहुंच गई, जो जुलाई के 58.1 के मुकाबले थोड़ी धीमी रही। यह गिरावट ऐसे समय में आई है जब कुछ कंपनियों ने तीव्र प्रतिस्पर्धा के चलते उत्पादन में चुनौतियों का सामना किया। सितंबर में जारी किए गए एक निजी सर्वेक्षण के अनुसार, इस धीमी वृद्धि के पीछे उत्पादन लागत और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मांग की कमी मुख्य कारण रहे हैं।

एचएसबीसी की मुख्य भारत अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी के अनुसार, “भारतीय विनिर्माण क्षेत्र ने अगस्त में विस्तार जारी रखा, हालांकि विस्तार की गति थोड़ी धीमी हो गई। नए ऑर्डर और उत्पादन भी मुख्य प्रवृत्ति के अनुरूप रहे।” उन्होंने यह भी कहा कि घरेलू मांग में वृद्धि से यह क्षेत्र अभी भी मजबूती बनाए हुए है, लेकिन वैश्विक मांग में गिरावट से कुछ चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं।

निर्यात ऑर्डर में कमी और प्रतिस्पर्धा का असर

सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि निर्यात ऑर्डर में गिरावट देखी गई, जिससे भारतीय कंपनियों के लिए वैश्विक बाजारों में अपनी उपस्थिति बनाए रखना कठिन हो गया। हालांकि, दस प्रतिशत कंपनियों ने अंतर्राष्ट्रीय बिक्री में सुधार देखा, जो कि एक सकारात्मक संकेत है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक आर्थिक स्थितियों में सुधार के साथ निर्यात ऑर्डर में भी धीरे-धीरे सुधार होने की संभावना है।

मुद्रास्फीति के मोर्चे पर सकारात्मक संकेत

मुद्रास्फीति के संबंध में एक महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलू सामने आया, जहां इनपुट मुद्रास्फीति या क्रय लागत मुद्रास्फीति पांच महीने के निचले स्तर पर आ गई। इससे उत्पादन लागत में कमी आई है, जो कि उत्पादकों के लिए राहत की बात है। भंडारी ने कहा, “एक सकारात्मक पहलू यह है कि इनपुट लागतों में वृद्धि तेज़ी से धीमी हो गई है, जिससे कंपनियों के लाभ मार्जिन में वृद्धि हो सकती है।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि इनपुट लागतों में गिरावट ने उत्पादकों को अधिक इन्वेंट्री खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया है। यह प्रवृत्ति आने वाले महीनों में उत्पादन क्षमता में वृद्धि का संकेत दे सकती है, जिससे विनिर्माण क्षेत्र को और मजबूती मिलेगी।

उत्पादन में लागत दबाव और भविष्य की संभावनाएँ

उत्पादन लागत में दबाव के कारण, लगभग 11 वर्षों में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई है। हालांकि, इस वृद्धि को कम करने के लिए कंपनियां लागत नियंत्रण के उपाय अपना रही हैं, जिससे उन्हें अपने मार्जिन को बनाए रखने में मदद मिल रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इनपुट लागतों में यह गिरावट जारी रहती है, तो आने वाले महीनों में उत्पादन मूल्य मुद्रास्फीति भी और धीमी हो सकती है।

इस बीच, भारतीय रिज़र्व बैंक के मौद्रिक नीति समीक्षकों ने इस गिरावट का स्वागत किया है और इसे देश की आर्थिक स्थिरता के लिए एक सकारात्मक संकेत माना है। उनका मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूत और स्थायी वृद्धि की संभावना है।

सरकार की प्रतिक्रिया और विनिर्माण क्षेत्र के लिए संभावित सुधार

सरकार भी इस गिरावट पर नजर रख रही है और विनिर्माण क्षेत्र को समर्थन देने के लिए नीतिगत सुधारों पर विचार कर रही है। उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार द्वारा उठाए गए कदम, जैसे कि कर छूट और उत्पादन प्रोत्साहन योजनाएं, इस क्षेत्र को और गति देने में सहायक हो सकते हैं।

कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सरकार को विनिर्माण क्षेत्र में नवाचार और तकनीकी उन्नति को बढ़ावा देने के लिए अधिक निवेश करने की आवश्यकता है। इससे भारतीय कंपनियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में मदद मिलेगी और निर्यात में वृद्धि होगी।

निष्कर्ष

अगस्त में विनिर्माण गतिविधि में आई यह धीमी गिरावट निश्चित रूप से चिंता का विषय है, लेकिन इसमें सकारात्मक संकेत भी छिपे हैं। लागत में गिरावट और सरकार की संभावित नीतिगत समर्थन से यह क्षेत्र जल्द ही अपनी गति पकड़ सकता है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय विनिर्माण क्षेत्र इन चुनौतियों का सामना कैसे करता है और क्या यह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अपने लिए स्थान बना पाता है।