लखनऊ : उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती राज्यों हरियाणा, राजस्थान व मध्यप्रदेश में गोवंशीय व महिष वंशीय पशुओं मे लंपी बीमारी के फैलते प्रकोप को देखते हुए गृह विभाग ने जारी की एडवाइजरी। जिलों में तैनात प्रशासन व पुलिस विभाग को अधिक सावधानी बरतने को कहा गया है.
गृह विभाग ने जो एडवाइजरी जारी की है उसके अनुसार, सीमावर्ती राज्य राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखण्ड और मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश के रास्ते में पड़ने वाले सभी बार्डर चेक पोस्टों खासकर सहारनपुर, मेरठ, आगरा व झांसी बॉर्डर पर निगरानी रखी जाए. साथ ही इन प्रदेशो से किसी गोवंशीय व महिष वंशीय पशु का उत्तर प्रदेश में एंट्री पर रोक लगा दी जाए.
अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी के मुताबिक, प्रदेश के सभी जिलों में मौजूद गोवंश व महिष वंश पशुओं को अन्य किसी जिलें में ले जाने पर भी रोक लगाई जाए. खासतौर पर पश्चिम से पूर्व की ओर जा रहे पशुओं को हाइवे चेक पोस्ट और पुलों पर निगरानी करते हुए पूरी तरह से रोका जाए. वहीं, राज्य में अगले आदेशों तक गोवंशीय व महिष वंशीय पशुओं का कोई भी हॉट-मेला नहीं लगाए जाएंगे. संक्रमित गोवंशीय और महिष वंशीय पशुओं के उपचार के लिए पशुपालन विभाग से समन्वय स्थापित करते हुए आवश्यक उपचार व टीकाकरण कराया जाए.
एडवाइजरी के अनुसार, संक्रमित गोवंशीय व महिष वंशीय पशुओं के आइसोलेशन, पशु डॉक्टरों के निर्देशों और उससे सम्बंधित प्रोटोकाल के अधीन उनके निथारना की कार्यवाही भी विशेष सतर्कता बरतते हुए सावधानी व संवेदनशीलता के साथ अमल में लाई जाए. इस संबंध में समय-समय पर भारत सरकार व उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों का अनुपालन भी सुनिश्चित किया जाए. साथ ही विषय की संवेदनशीलता के दृष्टिगत जिलों में उक्त दिशा-निर्देशों के अनुपालन व कानून-व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. साथ ही पशुपालन विभाग के संबंधित अधिकारियों-कर्मचारियों का सहयोग किया जाए.
क्या है लंपी वायरस के लक्षण
दुधारू पशुओं में फैल रहे ये बीमारी को ‘गांठदार त्वचा रोग वायरस’ यानी एलएसडीवी कहा जाता है. इस बीमारी के लक्षणों में पशुओं को लगातार बुखार रहना, वजन कम होना, लार निकलना, आंख और नाक का बहना, दूध का कम होना, पूरा शरीर पर अलग-अलग तरह के नोड्यूल दिखाई देना व चकत्ते जैसी गांठें बन जाना है. बीमारी की चपेट में आने से बचाव के लिए पशुओं को मच्छरों व अन्य कीटों से बचाना जरूरी है. इसके लिए पशुपालकों को पशुओं के बांधने वाले स्थान पर धुआं आदि का प्रबंध करना चाहिए.