बिहार : पूर्णिया जिले में एक ऐसी छिपकली को पुलिस ने बरामद किया है, जिसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1 करोड़ रुपये आंकी जा रही है. पूर्णिया पुलिस ने प्रतिबंधित टोकाय गेयको (Tokay Gecko lizard) के साथ पांच लोगों को गिरफ्तार किया है. इस नस्ल की छिपकली की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तक़रीबन 1 करोड़ रुपये बताया जा रहा है. इस छिपकली को तस्करी के लिए दिल्ली ले जाया जा रहा था. पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर बायसी क्षेत्र के एक दवा दुकान में छापा मारकर छिपकली को बरामद कर लिया.
पूर्णिया में मिली की छिपकली की कीमत 1 करोड़ः
गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने बायसी थाना क्षेत्र में एक दवा दुकान ताज मेडिसिन हॉल में छापेमारी कर ‘टोकाय गेयको’ नस्ल की काली छिपकली को जब्त किया. इसे दिल्ली के बाजार में भेजने की तस्कर तैयारी कर रहे थे. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत एक करोड़ रुपये है. इसके अलावा दुकान में 50 पैकेट कोडीन युक्त कफ सिरप भी बरामद किया गया. इसकी जानकारी बायसी एसडीपीओ आदित्य कुमार ने दी.
पश्चिम बंगाल से लाई गई थी छिपकलीः
वहीं SDPO ने बताया कि पश्चिम बंगाल के करंडीघी से इस छिपकली को लाया गया था. इस मामले में पुलिस ने 5 लोगों को गिरफ्तार किया है. आरोपी दवा दुकानदार फरार बताया जा रहा है. पुलिस दुकानदार की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर छापेमारी कर रही है और यह पता लगा रही है कि इस मामले में और कौन-कौन से लोग शामिल हैं. एसडीपीओ ने बताया कि पकड़े गए लोगों से पूछताछ की जा रही है और बहुत जल्द ही इस मामले में इस गिरोह का उजागर किया जाएगा.
टोकाय गेयको छिपकली का इस्तेमाल कहां होता है :
इसका उपयोग मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाओं के निर्माण में होता है. इसके मांस से नपुंसकता, डायबिटीज, एड्स और कैंसर की परंपरागत दवाएं बनाई जाती हैं. इसका उपयोग मर्दानगी बढ़ाने के लिए भी किया जाता है. खासकर दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इसकी बहुत ज्यादा मांग है. साउथ-ईस्ट एशिया में टोके गेको को अच्छी किस्मत और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये किडनी और फेफड़ों को मजबूत बनाती हैं. चीन में भी चाइनीज ट्रेडिशनल मेडिसिन में इसका उपयोग किया जाता है.
कहां कहां पायी जाती है टोकाय गेयको :
टोके गेको एक दुर्लभ छिपकली है, जो ‘टॉक-के’ जैसी आवाज निकालती है, जिसके कारण इसे ‘टोके गेको’ कहा जाता है. यह छिपकली दक्षिण-पूर्व एशिया, बिहार, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पूर्वोत्तर भारत, फिलीपींस तथा नेपाल में पाई जाती हैं. जंगलों की लगातार कटाई होने की वजह से यह खत्म होती जा रही है. इसकी तस्करी आए दिन किशनगंज के रास्ते होती है.